Bharat Kitne Morchon Par Ladega – Aur Kab Tak?

anshita
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Bharat Kitne Morchon Par Ladega – Aur Kab Tak?

"भारत कितने मोर्चों पर लड़ेगा – और कितने समय तक?"

एक विकासशील देश के रूप में प्रचारित भारत, एक ही समय में कई स्तरों पर काम कर रहा है और विकसित हो रहा है। ये प्रयास आंतरिक और बाहरी दोनों मोर्चों पर हो रहे हैं, कुछ अधिक स्पष्ट हैं, कुछ कम। अब यह प्रासंगिक होगा कि हम उन विभिन्न स्तरों का विश्लेषण करें जिन पर भारत संघर्ष कर रहा है, और इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करें: यह संघर्ष कितने समय तक टिकेगा?

1. बॉलीवुड की चुप्पी – जब हमारे सितारे युद्धभूमि में हमारे साथ नहीं खड़े होते

कभी भारतीय सिनेमा, खासकर बॉलीवुड, देशभक्ति, संस्कृति और पहचान को दर्शाता था। दुर्भाग्यवश, आज अधिकांश सितारे चुप्पी साधे हुए हैं या राष्ट्रविरोधी एजेंडे के प्रति हल्का समर्थन जताते हैं।

जब हमारे सैनिक शहीद होते हैं, तो अधिकांश कलाकार तटस्थ रहते हैं। आजकल केवल ग्लोबल, वामपंथी (लेकिन राष्ट्रविरोधी) एजेंडा ही चर्चा का विषय बनता है। ऐसी स्थिति में, जब कोई बाध्यता नहीं है, तो देशप्रेमियों को आदर्श क्यों नहीं माना जाता?

2. शत्रु पड़ोसी – भारत की बढ़ती समस्याओं में अड़चन

भारत के प्रमुख पड़ोसी – चीन, पाकिस्तान, और यहां तक कि बांग्लादेश – उसकी प्रगति में बाधा बन रहे हैं:

  • पाकिस्तान 1947 से ही पारंपरिक और छद्म युद्धों, आतंकवाद का सहारा ले रहा है।

  • चीन सीमा पर झड़पों और आर्थिक आतंकवाद द्वारा भारत को अस्थिर करने का प्रयास करता है।

  • बांग्लादेश राजनीतिक रूप से मैत्रीपूर्ण दिखता है, लेकिन अवैध प्रवासन और कट्टरपंथ की समस्याएं भारत में फैल रही हैं।

इन देशों का एक ही लक्ष्य है: भारत को हर समय सतर्क रखना, उसकी प्रगति को रोकना।

3. भारत एक नियंत्रित बाजार – पश्चिमी शक्तियों की सोच

पश्चिम, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोप, चाहता है कि भारत आर्थिक और राजनीतिक रूप से निर्भर बना रहे:

  • पश्चिमी मीडिया की भूमिका भी अब संदेह के घेरे में है। आज कुछ लोगों की ज़िंदगी ही झूठ के प्रचार पर चल रही है — खासकर पाकिस्तान और कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी समूह, जो पूरी दुनिया में झूठ को फैलाने और प्रचारित करने में लगे हुए हैं। ये लोग बार-बार एक ही झूठ बोलते हैं, और उसे इतना दोहराते हैं कि वह दुनिया को सच लगने लगता है। दुर्भाग्यवश, अब ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्विक मीडिया भी पाकिस्तान के इस एजेंडे में उनका साथ देने लगी है।

    वहीं भारत और भारतीय लोग अपने काम में लगे रहते हैं — सोचते हैं "हमें किससे क्या लेना देना?" लेकिन अब वक्त आ गया है कि भारत केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश न बने, बल्कि सच्चाई के समर्थन में आगे बढ़कर अपनी बात मजबूती से रखे। भारत को अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी झूठ के इस सुनियोजित नेटवर्क को चुनौती देनी होगी।

  • ऐसा प्रतीत होता है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) अब केवल आर्थिक मदद का संगठन नहीं रहा, बल्कि एक विशेष एजेंडे के तहत कार्य कर रहा है। हाल के वर्षों में IMF ने पाकिस्तान को बार-बार आर्थिक सहायता दी है, जबकि यह सर्वविदित है कि वहीं से आतंकवाद को पनाह और समर्थन मिलता रहा है — यही देश कभी ओसामा बिन लादेन का ठिकाना भी था। इसी कारण कुछ लोग अब IMF को 'इस्लामिक मुजाहिदीन फंड' कहने लगे हैं। फिर भी, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आंख मूंदकर ऐसे राष्ट्रों को समर्थन देती हैं, जिससे भारत जैसे देशों के लिए कई मोर्चों पर एक साथ लड़ना और भी कठिन हो जाता है।

  • रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान पश्चिमी लॉबी और नीतिगत संस्थाएं भारत की विदेश नीति को प्रभावित करने की कोशिश करती रहीं।

  • मानवाधिकारों की आड़ में एनजीओ भारत-विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा देते हैं।

  • आत्मनिर्भर भारत के प्रयासों को पश्चिमी शक्तियां आलोचना या बाधाओं से रोकने की कोशिश करती हैं।

भारत को समान भागीदार नहीं, बल्कि केवल उपभोक्ता माना जाता है जिसे राजनीतिक रूप से नियंत्रित किया जाना चाहिए।

4. आंतरिक दुश्मन – वामपंथी और पाकिस्तान समर्थक हमारे बीच

भारत का सबसे बड़ा खतरा बाहर से नहीं, बल्कि अंदर से है:

  • कट्टर वामपंथी विचारधारा ने विश्वविद्यालयों, मीडिया और नीति-निर्माण संस्थानों को प्रभावित किया है।

  • "टुकड़े-टुकड़े गैंग" जैसी विचारधाराएं देश को बांटने और भड़काने का काम कर रही हैं।

  • इनका प्रचार पाकिस्तान के नैरेटिव से मिलता-जुलता है, जो संयोग नहीं बल्कि साजिश लगती है।

ये लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके जनता के मन में जहर घोलते हैं और देश की नींव को ही सवालों के घेरे में डालते हैं।

5. वोट बैंक की राजनीति – जब नेता राष्ट्रीय हित को ताक पर रख देते हैं

लोकतंत्र में राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होना चाहिए। लेकिन भारत में वोट बैंक की राजनीति ने राष्ट्रीय हित को पीछे धकेल दिया है:

नेताओं ने न्याय के बजाय तुष्टीकरण को और दीर्घकालिक योजनाओं के बजाय चुनावी रणनीतियों को प्राथमिकता दी है। आतंकवाद विरोधी कानूनों का विरोध और सुधारों को रोकना सिर्फ इसलिए कि वोट बैंक बना रहे – यह भारत की एकता को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है।

6. समझौता किया गया मीडिया – सत्य नहीं, नैरेटिव बेचता है

कभी भारतीय मीडिया को निर्भीक पत्रकारिता के लिए जाना जाता था। लेकिन अब इसका बड़ा हिस्सा टीआरपी और विचारधारात्मक पूर्वाग्रह में फंस गया है:

मुख्यधारा मीडिया अब तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करता है, जरूरी मुद्दों को नजरअंदाज करता है, और अमहत्वपूर्ण चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है। कई बार यह मीडिया राष्ट्रविरोधी तत्वों का समर्थन करता है। इससे युवाओं के मन में अविश्वास और भ्रम पैदा होता है।

7. भ्रमित युवा – न दिशा है, न राष्ट्रीय दृष्टि

भारत की युवा जनसंख्या उसकी सबसे बड़ी संपत्ति है, लेकिन यही वर्ग सबसे अधिक प्रभावित और गुमराह भी हो रहा है।

रोजगार की अनिश्चितता, तनाव, पहचान संकट – इन सबसे युवा वर्ग हताश हो गया है। यह कट्टरता, उग्र कार्यकर्ता मानसिकता और नशे की ओर झुक रहा है।

मूल्य आधारित शिक्षा की कमी और अंधाधुंध पश्चिमीकरण युवाओं को उनकी जड़ों से दूर कर रही है।

8. ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का उदय

भारत में एक संगठित ‘बुद्धिजीवी’ लॉबी है जो भारत को ही समस्या बताती है। “स्वतंत्रता” के नाम पर ये लोग देश को बांटने की आज़ादी चाहते हैं।

ये लोग छात्रों के आंदोलनों, कार्यकर्ता मंचों और चुनिंदा गुस्से का इस्तेमाल कर भारत के कश्मीर, सेना और संविधान पर हमला करते हैं। कई विदेशी फंडिंग से जुड़े हैं या विदेशी हितों के समर्थक हैं।

9. सांस्कृतिक क्षरण – “वोक” संस्कृति की घुसपैठ

अब एक नया सांस्कृतिक आक्रमण शुरू हुआ है – विचारों के ज़रिये, जो प्रगति के नाम पर भारत की पारंपरिक संस्कृति, परिवार, त्योहार और धर्म को कमजोर कर रहे हैं।

राजनीतिक गलतफहमियों को सुधारना जरूरी है, लेकिन आधुनिकीकरण के नाम पर अपनी जड़ों को त्यागना हानिकारक है। वोक प्रभाव समाज को विभाजित करता है – लोग अपनी पहचान से शर्मिंदा हो जाते हैं और भविष्य को लेकर भ्रमित रहते हैं।

10. आर्थिक युद्ध – घरेलू मोर्चे पर संघर्ष

भारत की अर्थव्यवस्था बाहरी चुनौतियों के साथ-साथ अप्रभावी प्रशासन, अधिक नियंत्रण, और लॉबिंग का भी सामना कर रही है:

  • MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम), रोजगार की रीढ़ होते हुए भी प्रशासनिक बाधाओं से जूझते हैं।

  • किसानों को राजनीतिक हथियार बनाया जाता है, लेकिन नीतियों में उपेक्षा मिलती है।

  • जबकि बड़े कॉर्पोरेट्स को वैश्विक मंच मिलता है, छोटे उद्यमी संघर्ष में रहते हैं।

रणनीतिक ताकत आर्थिक ताकत से आती है। यदि भारत को वैश्विक स्तर पर लड़ना है, तो उसे पहले आंतरिक लड़ाई जीतनी होगी।

11. साइबर और डिजिटल हमले – अदृश्य मोर्चा

भारत के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर लगातार हमले हो रहे हैं। चीनी हैकर, प्रायोजित साइबर आतंकवादी और वैश्विक भ्रामक सूचना समूह लगातार निशाना बना रहे हैं:

  • सरकारी डेटा

  • वित्तीय तंत्र

  • सोशल मीडिया के माध्यम से जनमानस

साइबर युद्ध बम की तरह दिखाई नहीं देता, लेकिन इसका प्रभाव विनाशकारी होता है – संस्थागत व्यवस्था टूट सकती है, सीमाएं कमजोर पड़ सकती हैं।

12. धार्मिक ध्रुवीकरण – जबरन धर्म परिवर्तन माफिया

भारत एक बहुधार्मिक सभ्यता है, लेकिन यह विविधता कुछ उग्र संगठनों द्वारा अपहृत की जा रही है:

धर्म परिवर्तन माफिया – स्वदेशी और विदेशी दोनों – कमजोर समुदायों में धोखे या डराने के माध्यम से धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं।

ये संगठन शांति के बजाय विभाजन को बढ़ावा देते हैं, हिंदू सभ्यता पर प्रश्न उठाते हैं, और इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं।

निष्कर्ष: एक राष्ट्र 12 मोर्चों पर युद्ध में

भारत केवल सीमाओं पर नहीं लड़ रहा है। वह लड़ रहा है:

  • कॉलेज परिसरों में

  • नागरिकों के घरों में

  • संसद के भीतर

  • सोशल मीडिया पर

  • और समाज की चेतना में

इन चुनौतियों से पार पाने के लिए, नागरिकों को जागरूक होना होगा, और युवाओं को संगठित होकर आगे आना होगा। भारत को केवल वीर सैनिकों की नहीं, बल्कि विवेकशील नागरिकों, नैतिक नेतृत्व और जिम्मेदार मीडिया की ज़रूरत है।

तभी हम इस प्रश्न पर विचार कर पाएंगे—‘भारत कितने समय तक लड़ता रहेगा?’

निष्कर्ष: भारत कितने समय तक यह लड़ाई जारी रख सकता है?

अब ध्यान इस पर होना चाहिए कि भारत कितने मोर्चों पर लड़ रहा है नहीं, बल्कि वह कितने समय तक यह दबाव झेल सकता है

सच कहें तो ये संघर्ष तब तक चलते रहेंगे जब तक भारतवासी एकजुट होकर स्पष्ट और निर्णायक रूप से खड़े नहीं होते। सौभाग्य से एक राष्ट्रीय चेतना उभर रही है – खासकर युवा वर्ग में

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